Monday, April 1, 2019

"कलंक लिख कर मिटा रहा है"

लेखनी के ज्वार में, जलता स्याही
कलंक लिख कर मिटा रहा है

तुक, छन्द से पड़े होकर के
अर्थ काव्य को सजा रहा है
छायावाद के सारगर्भित
सजल करुणा गा रहा है
बन्द के संकुचित बंध से
शब्द बेड़ियां निभा रहा है

लेखनी के ज्वार में जलता स्याही
कलंक लिख कर मिटा रहा है

अनन्त स्वरूप , साम्य दर्पण
दृष्टा , दृश्य को दिखा रहा है
सत्य, असत्य, विलोम संबित
साध्य, श्रद्धा बता रहा है
उर्ध्व अवस्था, निम्न लोचन
निश्चित क्षय को पा रहा है

लेखनी के ज्वार में जलता स्याही
कलंक लिख कर मिटा रहा है

लहू के रंग का पृथक वर्णन
देख दृश्य मुस्का रहा है
ओज लिखता फिर मिटाता
अल्पविराम को धा रहा है
अनहद नाद शास्वत गाता
करुणा शंख बजा रहा है

लेखनी के ज्वार में जलता स्याही
कलंक लिख कर मिटा रहा है

भास्कर









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